Monday, May 29, 2017

फासलों के लिए एक दीवार होना चाहिए....

बेवजह लड़ने का इल्म
भी मेरे यार होना चाहिए ।

सामने से आये कोई
तो वार होना चाहिये ।

टालना मैंने नही सीखा
किसी बात को

सवाल पर जवाब का
प्रहार होना चाहिए ।

बेशक अमन कीमती
 है किसी घर के लिए

फासलों के लिए
एक दीवार होना चाहिए।

जंग जितने का हुनर
एक हीं है "अली"

सर कटाने को
हमेशा तैयार होना चाहिए।

" Har Jakham chhipana padta hai "


अपनों की गद्दारी का ;
हर ज़ख़्म छिपाना पड़ता है !
गैरों के  अपनेपन  से  ;
ये दिल बहलाना पड़ता है !
.......................................
है मालूम हमें मक्कारी  ;
पीठ के पीछे करता है ,
पर महफ़िल में हंसकर उससे ;
हाथ मिलाना पड़ता है !
.......................................
धोखा खाकर भी न सम्भले ;
मौत के मुंह तक आ पहुंचे ,
हमदर्दों की हमदर्दी का ;
मोल चुकाना पड़ता है !
....................................
मेरे कातिल खड़े भीड़ में ;
मातम खूब मानते हैं ,
हाय ज़नाज़े को कन्धा भी ;
उन्हें लगाना पड़ता है !
.....................................
'नूतन' दिल के टुकड़े-टुकड़े ;
हुए हैं दुनियादारी में ,
जल्लादों के आगे सिर ये ;
रोज़ झुकाना पड़ता है www.jangaliaz.blogspot.in/

Friday, May 26, 2017



कभी कभी सोचता हूं
की मर्द होना कितना बड़ा पाप है ।
फिर सोचता हूँ रहने दो मम्मी के 8 10 व्रत लड़के की चाह वाले बेकार हो जायेगे ।
दो तरह की सोच होती है
एक जिसने ने ललिता के ऊपर तेजाब फेंका
उसकी जिंदगी जला दी
दूसरा राहुल जिसने उसके शरीर पर गिरे तेजाब को अपनी जिंदगी बना ली ,
दोनों में फर्क क्या था सोच क्या थी पता नहीं
लेकिन सोच ही सोच को मात दे सकती है ये समझ आया,
पहले वाले की सोच को दुसरे वाले ने अपनी सोच से मात दी ।
जैसे रावण की सोच को राम की सोच ने मात दी थी
सुपनखा की सोच को सीता की सोच ने मात दी थी
सुपनखा अपने सौन्दर्य से लखन को जीतन चाहती थी
सीता वही अपने पति की अंतिम समय तक बस राम की बनके रहना चाहती थी।
सीता की सोच लंका के विध्वंस के साथ जीती और सुपनखा की सोच पूरी राक्षस जाती के अंत से ।
कही एक बाप सारी उम्र इसलिए मेहनत कर रहा की अपनी बेटी को डोली में बिठा के गाजे बाजे के साथ विदा कर सके
कही कोई बाप अपनी बेटी को बंद कमरे में रौंद रहा होता है ,
दोनों में आग है,
कही आग अपनी बेटी आबाद करने की लगी है
कही अपने बेटी को बर्बाद करने की आग
सब सोच का खेल है,
आज रात भी आपकी सोच का इम्तिहान होगा
आज भी एक लड़की तुम्हे सुनसान गली पार करते मिलेगी
सोच होगी तो घर तक उसे छोड़ आना
और सोच हुई तो उसे कही ले जाके रौंद आना ।
लेकिन इतना याद रखना तुम्हारी हर एक सोच पर कभी न कभी किसी की सोच भारी पड़ेगी ।

Saturday, January 14, 2017

#ACTING_KI SOCH




एक्टर बनना है?.... क्या बोलते ही खुलती है आपकी पोल!
मुम्बई में एक से बढ़ के एक बेहतरीन जिम हैं।
उनमें आप जाकर देख लीजिए।
हर जिम में सुंदर, हैंडसम, सुडौल और आकर्षक युवाओं की भरमार दिखेगी। सुगठित शरीर।
तराशे हुए बदन।
लेकिन इनमें से ज़्यादातर युवा तब तक ही आपको आकर्षित करेंगे,
जब तक आप उनको सिर्फ़ देख रहे हैं। जैसे ही उनसे बातचीत शुरू होती है, ज़्यादातर की आवाज़, भाषा और उच्चारण सुनकर झटका सा लगता है।
बदन जितना आकर्षक है, आवाज़ उतनी ही बुरी।
कभी कभार शब्द भी उतने ही हलके और छिछले।
किसी लड़के की आवाज़ पतली सी है तो किसी की कर्कश।
किसी की आवाज़ में ही रस नहीं है।
किसी लड़की की आवाज़ में मधुरता नहीं है।
भाषा में वज़न नहीं है।
किसी की आवाज़ उसके मुँह में ही फँसी रह जाती है।
यहाँ ये बात स्पष्ट कर लें कि एक्टर के लिए उसका शरीर ही इंस्ट्रूमेन्ट है।
शरीर के माध्यम से ही वो अपने आप को अभिव्यक्त (Express) कर सकता है। लेकिन आवाज़ भी उतनी ही महत्वपूर्ण है,
क्योंकि इसके माध्यम से ही आप अपने इमोशन्स बयाँ कर सकते हैं।
इसीलिए आवाज़ बहुत महत्वपूर्ण है।
ज़रूरी नहीं है कि male actors की आवाज़ भारी भरकम या गहरी (baritone या deep) हो। या Female Actors की आवाज़ मधुर कंठ वाली या मीठी हो। सबकी आवाज़ की क्वालिटी अलग-अलग होती है।
बस आवाज़ सधी हुई और Flexible हो।
क्योंकि आवाज़ का भी अपना एक आकर्षण होता है।
एक जादू होता है जो सुनने वाले के सिर चढ़कर बोलता है।
आपकी आवाज़ और भाषा ही आपका वज़न बढ़ाती है।
शरीर भी आकर्षक होना चाहिए,
लेकिन इसका आकर्षण क्षणिक है।
सधी हुई मधुर आवाज़ और प्रभावशाली भाषा का प्रभाव ही
दिलो-दिमाग़ पर जड़ें जमाता है।
कई लोग एक्टर बनना चाहते हैं।
लेकिन उनका सारा ध्यान सिक्स पैक्स बनाने
या अच्छी बॉडी दिखाए रखने पर ही होता है।
बहुत कम एक्टर ऐसे होते हैं जो अपनी आवाज़ और भाषा पर भी काम करते हैं।
ऐसे समझदार एक्टर ही लम्बी रेस के घोड़े साबित होते हैं।
इसीलिए हर एक्टिंग स्कूल में
आवाज़, भाषा और उच्चारण पर बहुत ज़ोर दिया जाता है।
क्योंकि बेहतरीन संवाद अदायगी वाले एक्टर्स को
हमेशा तवज्जोह मिलती रही है।
इसीलिए मैं भी अपनी क्लासेज़ में अच्छी सधी हुई आवाज़ बनाने
और अच्छी भाषा पर हमेशा ज़ोर देता रहा हूँ।
इसके लिए एक्टर्स को ख़ूब मेहनत भी कराई जाती है।
कई तरह की एक्सरसाइज़ेज कराई जाती हैं।
ताकि जैसे ही वे मुँह खोलें, लोगों को उसकी बात सुनना अच्छा लगे।
सिनेमा की शुरूआत में मूक फ़िल्में (Silent Movies) बना करती थीं।
लेकिन जब से सिनेमा को आवाज़ मिली,
संवाद अदायगी का महत्व बहुत बढ़ गया।
ऐसे कई कलाकार जो मूक फ़िल्मों में ज़बरदस्त एक्टिंग किया करते थे,
बाद में नहीं चल पाए।
वे ही लोग चल सके जो बोल सकते थे।
या उस समय जो अच्छा गा सकते थे,
उन्हें ही फ़िल्में मिलने लगीं।
आज भी वही दौर चल रहा है।
हिन्दी सिनेमा में ऐसे अनेक एक्टर हैं
जिनकी आवाज़ ने उनकी एक ख़ास जगह लोगों के ज़ेहन में बनाई है।
इसीलिए अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने वाले एक्टर्स को आप गिन लीजिए,
उन सबकी भाषा, आवाज़ और संवाद अदायगी में
आपको एक ख़ास आकर्षण महसूस होगा।
इन एक्टर्स ने अपनी भाषा को हमेशा तराशे हुए रखा।
कभी कभार जब फ़िल्म का कैरेक्टर किसी क्षेत्र विशेष का होता है
तब ये ही एक्टर आसानी से सम्बंधित भाषा को अपना लेते हैं।
वहां भाषा शुद्ध होना ज़रूरी नहीं होता।
लेकिन अच्छे एक्टर्स की यही पहचान है
कि वे उस अशुद्ध भाषा को भी आसानी से अपना लेते हैं,
जो कैरेक्टर की ज़रूरत है।
हिन्दी ऐसी भाषा है जिसने उर्दू, अरबी, अंग्रेज़ी समेत
कई भाषाओं के शब्दों को बड़े लाड-प्यार से अपना लिया है।
इसीलिए इन शब्दों का उच्चारण सीखे बग़ैर
उन्हें बोलना एक तरह से भाषा के साथ अन्याय है।
जो लोग जानकार हैं,
जब किसी से अशुद्ध उच्चारण सुनते हैं
तो ऐसा लगता है मानों दिल पर पत्थर पड़ रहे हों।
इसलिए ऐसी अशुद्ध भाषा और नॉन स्टैण्डर्ड आवाज़ वाले एक्टर्स को
ऑडिशन में नकार दिया जाता है।
इसकी वजह ये है कि आजकल अमूमन शूट के दौरान
सिंक रिकॉर्डिंग होती है।
यानी जो सेट पर शूट होता है, वही आवाज़ भी फ़ाइनल होती है।
इसके लिए अच्छे सेंसिटिव माइक लगाकर
एक्टर्स की आवाज़ रिकॉर्ड कर ली जाती है।
इससे डबिंग की ज़रूरत नहीं पड़ती।
इसीलिए सभी प्रोडक्शन हाउस ऐसे एक्टर्स ही लेना चाहते हैं
जिनकी आवाज़ और भाषा दमदार हो।
जो शुद्ध उच्चारण कर सकें।
क्योंकि सेट पर कोई भी आपको भाषा सिखाने नहीं बैठेगा।
न ही आपको वहाँ पर
आवाज़ को प्रभावी बनाने की एक्सरसाइज़ेज कराई जाती हैं।
अगर आप प्रोफ़ेशनल एक्टर हैँ
तो ये सब तो आपकी ज़िम्मेदारी है।
इसीलिए कई ऐसे लोग, जो अच्छे दिखते हैं, अच्छी एक्टिंग भी कर लेते हैं, लेकिन सिर्फ़ भाषा और आवाज़ की वजह से बरसों तक मात खाते रहते हैं।
अफ़सोस ये भी है कि उन्हें कोई बताने वाला भी नहीं होता कि
भाई थोड़ा अपना डिक्शन सुधार लो और आवाज़ को प्रभावी बना लो।
उन्हें समझ में ही नहीं आता
कि उनकी एक्टिंग में आख़िर क्या बुराई है।
बस उनका ध्यान सिर्फ़ ख़ुद को ऊपरी तौर पर ही
आकर्षक बनाए रखने पर लगा रहता है।
अंदरूनी तौर पर आवाज़ और भाषा पर काम करने का
उन्हें ख़याल ही नहीं आता।
जबकि ये ही चीज़ें अच्छे एक्टर की पहचान है।
शरीर तो बूढ़ा हो जाता है।
चेहरे का शेप भी उम्र के साथ बदलता रहता है।
लेकिन सिर्फ़ अच्छी भाषा और उच्चारण ही है
जो ताउम्र आपको बेहतर बनाए रखता है।
अच्छी आवाज़, अच्छा उच्चारण और भाषा आपकी बहुत बड़ी पूँजी है।
अगर इस मामले में आप तंग हैं
तो कृपया इस पूंजी को इकट्ठा कीजिए।
अख़बार पढ़िए।
टीवी पर अच्छी बहसें सुनिए।
ग़ज़ल और पुराने गीत सुनिए।
अपना शब्द भंडार बढ़ाइए।
साथ ही अपना ज्ञान भी बढ़ाइए।
ताकि आप दिन-प्रतिदिन की ख़बरों से अवगत रहें
और कभी किसी बात पर अटक न जाएं।
अगर एक्टर बनना है
तो ये बात आज से समझ लीजिए
कि बिना अच्छी आवाज़ और अच्छी भाषा के
आपका गुज़ारा नहीं होने वाला। -



नरेश पाँचाल, एक्टिंग कोच,
लोखंडवाला अंधेरी वेस्ट, मुम्बई। 

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