कभी कभी सोचता हूं
की मर्द होना कितना बड़ा पाप है ।
फिर सोचता हूँ रहने दो मम्मी के 8 10 व्रत लड़के की चाह वाले बेकार हो जायेगे ।
दो तरह की सोच होती है
एक जिसने ने ललिता के ऊपर तेजाब फेंका
उसकी जिंदगी जला दी
दूसरा राहुल जिसने उसके शरीर पर गिरे तेजाब को अपनी जिंदगी बना ली ,
दोनों में फर्क क्या था सोच क्या थी पता नहीं
लेकिन सोच ही सोच को मात दे सकती है ये समझ आया,
पहले वाले की सोच को दुसरे वाले ने अपनी सोच से मात दी ।
जैसे रावण की सोच को राम की सोच ने मात दी थी
सुपनखा की सोच को सीता की सोच ने मात दी थी
सुपनखा अपने सौन्दर्य से लखन को जीतन चाहती थी
सीता वही अपने पति की अंतिम समय तक बस राम की बनके रहना चाहती थी।
सीता की सोच लंका के विध्वंस के साथ जीती और सुपनखा की सोच पूरी राक्षस जाती के अंत से ।
कही एक बाप सारी उम्र इसलिए मेहनत कर रहा की अपनी बेटी को डोली में बिठा के गाजे बाजे के साथ विदा कर सके
कही कोई बाप अपनी बेटी को बंद कमरे में रौंद रहा होता है ,
दोनों में आग है,
कही आग अपनी बेटी आबाद करने की लगी है
कही अपने बेटी को बर्बाद करने की आग
सब सोच का खेल है,
आज रात भी आपकी सोच का इम्तिहान होगा
आज भी एक लड़की तुम्हे सुनसान गली पार करते मिलेगी
सोच होगी तो घर तक उसे छोड़ आना
और सोच हुई तो उसे कही ले जाके रौंद आना ।
लेकिन इतना याद रखना तुम्हारी हर एक सोच पर कभी न कभी किसी की सोच भारी पड़ेगी ।