"Confidence and Hard work is the medicine that kills a disease called "Failure" and It make a successful person In Life"~~Dr. APJ Abdul Kalam®
Thursday, April 30, 2020
Wednesday, March 11, 2020
MP CRISIS : The Dirty Game of Politics | BLOG
Rahul गांधी के लिए खतरा माने जा रहे
ज्योतिरादित्य ने पावर स्ट्रक्चर में प्रासंगिक बने रहने के लिए एक आखिरी प्रयास किया. उन्होंने राज्यसभा में मनोनयन के लिए कहा लेकिन गांधी परिवार से इससे भी इनकार कर दिया. कांग्रेस पार्टी के रिपोर्ट करने वालों के अनुसार, सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि ज्योतिरादित्य मजबूत हों.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे त्यागपत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia)ने लिखा, 'मेरा उद्देश्य अपने राज्य और देश के लोगों की सेवा करना है.' इसमें कुछ भी अनोखी बात नहीं है. आप किसी भी राजनेता से पूछिये] वे यही कहेंगे कि वे राजनीति में सेवा करने के लिए हैं और हम सभी जानते हैं कि यह सही नहीं है. नेता राजनीति में इसलिए हैं क्योंकि उनमें सत्ता (पावर) में रहने की इच्छा होती है. लोकतंत्र में वे अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए चुनाव लड़ते हैं. यदि वे जीतते हैं तो नियम बनाकर यह तय करते हैं कि लोगों पर किस तरह से शासन किया जाएगा. यदि वे हारते हैं तो वे राज्य से बातचीत कर रियायत हासिल करने के लिए दबाव बनाते हैं.
भारत में दो तरह की राजनेता हैं: एक वह जो ऊपर से सत्ता हासिल करते हैं और दूसरे वे नीचे से संघर्ष करते हुए ऊंचाई तक पहुंचते हैं. पहली तरह के नेता आमतौर पर शक्तिशाली राजनैतिक परिवारों में जन्म लेते हैं या फिर पार्टी संगठन में शक्तिशाली पद पर काबिज पदाधिकारी होते हैं अथवा वे ऐसे ऐसे पेशे से प्रवेश करते हैं जो राज्य के कामकाज के साथ सीधे तौर पर जुड़े होते हैं जैसे-वकील. ज्योतिरादित्य सिंधिया सीधे तौर पर इस पहली तरह के राजनेताओं के समूह से संबंध रखते हैं. दूसरी तरह के नेता कार्यकर्ता के तौर पर और अपराध के रास्ते से आगे बढ़ते हैं. जब किसी हॉकर का ठेला जब्त कर लिया जाता है तो ये लोगों को एकत्र करके पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध प्रदर्शन के लिए तैयार करते हैं. वे अवैध अतिक्रमणों को नियमित करने के लिए आंदोलन करते हैं. वे उन स्थानों पर 'कीमत' लेकर पानी और बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था करते हैं जहां राज्य की 'पहुंच' नहीं है. इनके संबंध स्थानीय माफिया से होते हैं जो नियम/कानून लागू करने वालों के साथ मिलकर काम करते हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया (फाइल फोटो)
ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह के राजनेता आमतौर पर राज्य विधानसभाओं और संसद में होते हैं. ये टीवी न्यूज शो में शामिल होते हैं, पुस्तकों के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि बनते है, डिनर पार्टियों की शान बढ़ाते हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस में पक्ष रखते हैं. इन नेताओं को पार्टी संगठन में अहम स्थान हासिल होता है और ये मंत्री और मुख्यमंत्री बनते हैं. हालांकि 'ऊपर' वाले इन नेताओं को भी नीचे वाले नेताओं के नेटवर्क पर निर्भर रहना पड़ा है. हर छुटभैये नेता का स्थानीय पावरबेस होता है जिसे वे चुनाव के समय के लिए तैयार रखते हैं. ऐसे कई स्थानीय नेता, जिसमें से हर वोटरों के एक समूह का प्रतिनिधित्व करता है, एक बड़े नेता के लिए बड़ा आधार तैयार करते हैं. ये राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार, छोटी राजनैतिक इकाइयों के तौर पर एक पार्टी से दूसरे पार्टी में जा सकते हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया को सत्ता में अपना प्रभुत्व बरकरार रखने के लिए ऐसे नेताओं के 'पिरामिड' की जरूरत है. ऐसे में उन्हें सत्ता के 'फल' से इस पिरामिड को बनाए रखने की दरकार है. जब एक पार्टी सरकार से बाहर हो जाती है तो शीर्ष स्तर के नेता मिलने वाले फंड, नौकरी के लिए अनुशंसाओं, सहयोगी कार्पोरेट जगत से मिलने वाले ठेकों और विरोधी पार्टी की सरकार की ओर से छोड़े गए कामों को इन नेताओं में 'बांट' देते हैं. जब एक पार्टी सरकार बनाती है तो सत्ता का लाभ अधिक धनवान बनाने वाला होता है. ऐसे में शीर्ष स्तर के नेताओं को ऐसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जरूरत होती है जो अहम संसाधनों को नियंत्रित करती है. वे इसके लाभों को इस पिरामिड में बांट देते हैं. एक तरह से ही बड़े नेताओं का राजनैतिक सत्ता में शीर्ष पर बने रहने का तरीका है. ज्योतिरादित्य के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद लगाकर 'सिंधिया का यह पावर सिस्टम' सरकार में होने के चलते खजाने में 'हिस्सेदारी' की उम्मीद लगाए था. न तो ऐसा हुआ बल्कि सिंधिया को उस शख्स की ओर से अलग-थलग कर दिया गया जो मध्यप्रदेश में सत्ता के सिंहासन में बैठा था. कांग्रेस पार्टी की राज्य में जीत के कुछ माह बाद ज्योतिरादित्य को महसूस किया कि पार्टी की मशीनरी ने गुना के लोकसभा के चुनाव की 'जंग' में उनका पूरी तरह समर्थन नहीं किया. इस युवा नेता के लिए स्थितियां इतनी बिगड़ गईं कि वह अधिकारियों का ट्रांसफर तक नहीं करा पा रहा था.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के साथ राहुल गांधी (फाइल फोटो)
कांग्रेस हाईकमान ने साफ संदेश भेजा कि वे ज्योतिरादित्य का सियासी कद छोटा करना चाहता है. उन्हे लोकसभा चुनावों में पश्चिमी यूपी का चार्ज सौंपा गया, जहां कांग्रेस पार्टी के बुरे प्रदर्शन की उम्मीद थी. दूसरी ओर, प्रियंका गांधीको पूर्वी यूपी का चार्ज मिला जहां कांग्रेस ने 2014 में भी कुछ बेहतर प्रदर्शन किया था. ऐसे में कोई भी संभावित 'लाभ' प्रियंका के खाते में जाता और कोई भी नुकसान ज्योतिरादित्य के हिस्से में जाता.
ऐसे में ज्योतिरादित्य ने पावर स्ट्रक्चर में प्रासंगिक बने रहने के लिए एक आखिरी प्रयास किया. उन्होंने राज्यसभा में मनोनयन के लिए कहा लेकिन गांधी परिवार से इससे भी इनकार कर दिया. कांग्रेस पार्टी के रिपोर्ट करने वालों के अनुसार, सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि ज्योतिरादित्य मजबूत हो और कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार के वर्चस्व के लिए संभावित रखना बनें. ऐसे में ज्योतिरादित्य के पास एक रास्ता ही बाकी था-वह था कांग्रेस पार्टी को छोड़ना. उन्होंने धारा 370 हटाने के सरकार के रुख का समर्थन करके बीजेपी के लिए रास्ते खोल लिए थे. सिंधिया से नजदीकी रखने वाले कई पत्रकारा उनकी 'संभावित विदाई' की बात करने लगे थे. अगर वे ऐसा नहीं करते तो सिंधिया का पावर सिस्टम बिखरकर रह जाता और उनका करियर खत्म हो जाता. सवाल यह उठता है कि क्या गांधी परिवार के पास कोई अन्य विकल्प था? यदि कांग्रेस मध्यप्रदेश में स्पष्ट बहुमत से जीतती तो हाईकमान अपना आदेश थोप सकता था, लेकिन पार्टी बहुमत के आंकड़े के करीब आकर ठहर गई. ऐसी स्थिति में गांधी परिवार को कमलनाथ के पक्ष में फैसला करना पड़ा जिनके पास सीधे तौर पर ज्यादा विधायक थे. 2019 के चुनाव में राहुल गांधी की नाकामी ने ज्योतिरादित्य को गांधी परिवार के लिए बड़ा खतरा बना दिया था. वे अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, उनकी अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि है, देश के टॉप कार्पोरेट्स के घर तक उनकी पहुंच है और मीडिया में उनके अच्छे कनेक्शन हैं/
ज्योतिरादित्य ऐसे अकेले नेता नहीं है जो पार्टी में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे. कई कई युवा नेता हैं खासतौर पर यूपी में. इनमें से ज्यादातर यूपी के शक्तिशाली परिवार के वारिस है और जहाज से छलांग लगाने के बारे में सोच रहे हैं. कांग्रेस पार्टी इस राज्य में कोई सुधार करती नजर नहीं आ रही है. ऐसे में बीजेपी, एसपी या बीएसपी की ओर रुख करना इन युवा नेताओं के लिए अपने सियासी करियर को बरकरार रखने में मददगार हो सकता है. कुल मिलाकर गांधी हो या ज्योतिरादित्य सिंधियां, राजनीति की दुनिया में हर किसी को 'पावर' की जरूरत होती है और यदि उन्हें इससे दूर रखा जाता है तो उन्हें दूसरे विकल्प की तलाश की जरूरत होती है. ज्योतिरादित्य के लिए बीजेपी स्वाभाविक विकल्प था. उनकी दो बुआ इस पार्टी में हैं और उनकी दादी जनसंघ के समय से इस पार्टी की प्रमुख नेता रही है. शुरुआत में उन्हें इस पार्टी में ढलने में दिक्कत हो सकती है लेकनि उनके वापस दूसरा कोई विकल्प नहीं था.
SOURCE: NDTV
(ऑनिन्द्यो चक्रवर्ती NDTV के हिन्दी तथा बिज़नेस न्यूज़ चैनलों के मैनेजिंग एडिटर रहें है)
Subscribe to:
Posts (Atom)
What are the benefits and facilities extended to a Bharat Ratna awardee? 🌟🔥
Bharat Ratna is India’s Highest Civilian Honour. But what do the awardees receive from the Government? What is the worth of the medallion ...
-
"A Man Who never Made a Mistake , Has Never Tried Anything new ~Ragib® www.twitter.com/mdragibalam99